ग़ज़ल
मेरी लिखी हुई गिनी चुनी ग़ज़लों में से एक ग़ज़ल
हाल में ही आम आदमी के सरोकारों को अपनी कलम से आवाज देने वाले शायर 'अदम गोंडवी ' के निधन के पश्चात फिर से वही सरकारी मदद और पुरस्कारों की घोषणाओं का नाटकीय शोर सुनाई देने लगा ..........
ठीक ऐसे ही कालजयी उपन्यास ' राग दरवारी' के रचनाकार श्री लाल शुक्ल को एक प्रतिष्ठित पुरस्कार तब दिया गया जब उनके लिए पुरस्कार के कोई मायने ही नहीं थे .............
ऐसे ही ना जाने कितने सम्मानित विभूतियों को ऐसी स्तिथि में सम्मान की औपचरिकता के निर्वहन का एक हिस्सा तब बनाया जाता है जब उनकी उम्र अपना पड़ाव तय कर चुकी होती है ...........
आखिर जीवन के अंतिम पलों में या मृत्यु उपरांत दिए जाने वाले पुरस्कारों का क्या औचित्य है ?ये प्रश्न हम आम जन के दिमाग में ना जाने कितनी बार कौंधता है जब न्यूज पेपर ,समाचार हमें बताते हैं कि अमुक सम्मान अमुक को .......
माना कि कलाकार या साहित्यकार के सृजन को पुरस्कारों की दरकार नहीं होती फिर भी कला का सम्मान करना यानि अपनी संस्कृति का सम्मान करना है फिर वो सम्मान उस समय क्यों नहीं जब कलाकार उस सम्मान के ओज और उत्साह से अपने कृतित्व को और रवानी दे सके ..............
यही सब सोचते सोचते ये दो लाइन अपने मोबाइल के नोट बुक पर लिखीं थीं .......अब कद्र -रहमतें क्यों भला / जो चला गया वो चला गया ...............कल जब नींद ने मोहलत दे दी थोड़ी देर जागने की तो सोचा इस शेर के साथ पूरी ग़ज़ल को ही मुकम्मल करूँ कुछ और पहलुओं के साथ ............
जो लिखा नहीं वो पढ़ा गया
जो कहा नहीं वो सुना गया
उसे सब अमीर -ऐ -दिल कहें
वो जो शख्स आँसू छुपा गया
अब कद्र ,रहमतें क्यूँ भला
जो चला गया ,वो चला गया
हम दायरों में ही खुश रहे
हमें खुशमिज़ाज कहा गया
सुबह ख़्वाब लगते हैं अजनबी
हमें नींद में भी छला गया
जिसे दुःख कभी ना रुला सके
उसे पल खुशी का रुला गया
हर रास्ते का मुकाम है
हर मात पे ये कहा गया
हाल में ही आम आदमी के सरोकारों को अपनी कलम से आवाज देने वाले शायर 'अदम गोंडवी ' के निधन के पश्चात फिर से वही सरकारी मदद और पुरस्कारों की घोषणाओं का नाटकीय शोर सुनाई देने लगा ..........
ठीक ऐसे ही कालजयी उपन्यास ' राग दरवारी' के रचनाकार श्री लाल शुक्ल को एक प्रतिष्ठित पुरस्कार तब दिया गया जब उनके लिए पुरस्कार के कोई मायने ही नहीं थे .............
ऐसे ही ना जाने कितने सम्मानित विभूतियों को ऐसी स्तिथि में सम्मान की औपचरिकता के निर्वहन का एक हिस्सा तब बनाया जाता है जब उनकी उम्र अपना पड़ाव तय कर चुकी होती है ...........
आखिर जीवन के अंतिम पलों में या मृत्यु उपरांत दिए जाने वाले पुरस्कारों का क्या औचित्य है ?ये प्रश्न हम आम जन के दिमाग में ना जाने कितनी बार कौंधता है जब न्यूज पेपर ,समाचार हमें बताते हैं कि अमुक सम्मान अमुक को .......
माना कि कलाकार या साहित्यकार के सृजन को पुरस्कारों की दरकार नहीं होती फिर भी कला का सम्मान करना यानि अपनी संस्कृति का सम्मान करना है फिर वो सम्मान उस समय क्यों नहीं जब कलाकार उस सम्मान के ओज और उत्साह से अपने कृतित्व को और रवानी दे सके ..............
यही सब सोचते सोचते ये दो लाइन अपने मोबाइल के नोट बुक पर लिखीं थीं .......अब कद्र -रहमतें क्यों भला / जो चला गया वो चला गया ...............कल जब नींद ने मोहलत दे दी थोड़ी देर जागने की तो सोचा इस शेर के साथ पूरी ग़ज़ल को ही मुकम्मल करूँ कुछ और पहलुओं के साथ ............
जो लिखा नहीं वो पढ़ा गया
जो कहा नहीं वो सुना गया
उसे सब अमीर -ऐ -दिल कहें
वो जो शख्स आँसू छुपा गया
अब कद्र ,रहमतें क्यूँ भला
जो चला गया ,वो चला गया
हम दायरों में ही खुश रहे
हमें खुशमिज़ाज कहा गया
सुबह ख़्वाब लगते हैं अजनबी
हमें नींद में भी छला गया
जिसे दुःख कभी ना रुला सके
उसे पल खुशी का रुला गया
हर रास्ते का मुकाम है
हर मात पे ये कहा गया
गज़ल का हर शेर मर्मस्पर्शी ... मन को छूती हुयी गज़ल सराहनीय ...बहुत ही उम्दा लेखन....सोनरूपा जी !!
जवाब देंहटाएंआप को भी सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
जो लिखा नहीं पढ़ा गया
जवाब देंहटाएंजो कहा नहीं सुना गया
............
इस ज़माने में यही करिश्मा देखा गया
बहुत सटीक प्रश्न उठाया है...बहुत उम्दा गज़ल..हरेक शेर दिल को छू जाता है..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना है........अब यह निस्संदेह कहा जा सकता है कि आप श्रद्धेय उर्मिलेश जी की बराबरी पर आ गई हैं.....
जवाब देंहटाएंउसे सब अमीरे दिल कहें
जवाब देंहटाएंवो जो शख्स आँसू छुपा गया.. बड़ी मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ हैं।
राजनीतिक गंठजोड़ और बाहुबली उठापठक के बीच कला और साहित्य की क़द्र कहाँ? सुन्दर, सटीक रचना, आभार! नववर्ष की शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल !
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है हर शेर उम्दा........दाद कबूल करें|
जवाब देंहटाएंजिसे दुख कभी न रूला सके,
जवाब देंहटाएंउसे पल खुशी का रूला गया
बहुत ही खूबसूरती से लिखा गया हर शब्द ... अपने भाव व्यक्त करने में पूर्णत: कामयाब रहा ...आपका इस बेहतरीन लेखन के लिए आभार ।
HUM DAYRON MAI HI KHUSH RAHE,
जवाब देंहटाएंHUME KHUSH MIJAJ KAHA GAYA'........
JISE DUKH KABHI NA RULA SAKE,
USE HAR PAL KHUSI KA RULA GAYA.
Bahut hi sundar gazal,ERSHAD ...ERSHAD
हम दायरों में ही खुश रहे
जवाब देंहटाएंहमें खुशमिज़ाज कहा गया
बेहद पसंद आया ये शेर !
आप सभी की हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया ! आदरणीय अशोक जी ...बहुत बड़ी बात कह दी है आपने !
जवाब देंहटाएंसुबह ख़्वाब लगते हैं अजनबी
जवाब देंहटाएंहमें नींद में भी छला गया ...
हर रास्ते का मुकाम है
हर मात पे ये कहा गया ...
क्या बात है ! बहुत अच्छी रचना ।
नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
आपकी ये रचना कल रविवारीय चर्चा मंच पे लगायी जायेगी ,
जवाब देंहटाएंसादर
कमल कुमार सिंह
आपकी अच्छी और भावपूर्ण रचना बहुत अच्छी लगी हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
आत्म अनुभूति को अभिव्यक्त करती बेहतरीन ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंकल 11/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, उम्र भर इस सोच में थे हम ... !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत सुन्दर गजल लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंमेरी भी रचना देखें ।
मेरी कविता:मुस्कुराहट तेरी
बहुत ही प्यारी गजल है।
जवाब देंहटाएंसादर
bahut hi umda gazal hai,nishbd kiya aap ne ,bdhai sweekaren..... pahli baar blog par aana hua,khushi huee aakr....
जवाब देंहटाएंगज़ल का हर शेर गज़ब कर रहा है ..बहुत खूबसूरत गज़ल पांचवें और छठे शेर ने आकर्षित किया ..
जवाब देंहटाएंbahut badhia likha hai ...badhai ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गजल ....
जवाब देंहटाएंwhat a deep thought;;;
जवाब देंहटाएंI like your gazals;;;
"जो चला गया वो चला गया"
जवाब देंहटाएंवाह, खूबसूरत ग़ज़ल!
wah...bahut khoob
जवाब देंहटाएंWelcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
उसे सब अमीर -ऐ -दिल कहें
जवाब देंहटाएंवो जो शख्स आँसू छुपा गया
अब कद्र ,रहमतें क्यूँ भला
जो चला गया ,वो चला गया
gazal ko bahut hi sadhe huye andaj me prastut kiya hai Sonroopa ji apne ..... hr sher lajabab .....abhar ke sath badhai.
bahut sundar gazal,
जवाब देंहटाएंek ek baat bemishal
अब कद्र ,रहमतें क्यूँ भला, जो चला गया ,वो चला गया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सनरूपाजी, वैसे भी ये बस्ती है मुर्दा परस्तों की बस्ती.....
really nice..
जवाब देंहटाएंgood one..
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंलाजवाब...
हर रास्ते का मुकाम है
जवाब देंहटाएंहर मात पे ये कहा गया.
आपकी प्रस्तुति भावपूर्ण और लाजबाब है.
शब्दों और भावों का सटीक संयोजन हुआ है.
कई बार आपके ब्लॉग पर आने का प्रयास किया,
पर आपका ब्लॉग पृष्ठ खुल ही नहीं रहा था.
डेश बोर्ड से आने पर 'यह ब्लॉग हटा लिया गया है'
की सूचना मिल रही थी.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
आपने बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं, अब इन पर विचार किया जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंऔर हां, गजल तो शानदार है ही। बधाई।
------
..की-बोर्ड वाली औरतें।
शानदार..जानदार..
जवाब देंहटाएंbahut jajavaab gajal likhi hai pad kar achchha laga,badhai.
जवाब देंहटाएंअब कद्र रहमतें क्यों भला ,
जवाब देंहटाएंजो चला गया ,वो चला गया . बढ़िया कशिश है रचनाकार की .
अब कद्र ,रहमतें क्यूँ भला, जो चला गया ,वो चला गया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सनरूपाजी, वैसे भी ये बस्ती है मुर्दा परस्तों की बस्ती....