नीरज जी पीड़ा के,दर्शन के,प्रेम के कवि कहलाए जाते हैं। गीतों के वो प्रथम हिमालयीन निर्मल जल जिसका यदि आचमन कर लिया जाए तो जीवन से परिचय हो जाये। प्रीति से प्रतीति की एक डोर। जीवन के प्रारब्ध को बाँचता हुआ संत स्वर जिसका शब्द-शब्द मंत्र हो यानी गोपालदास 'नीरज'।आज उनकी जन्मजयंती है।वो स्वयं को अपने गीतों की सन्तूरी ध्वनियों में स्पंदित कर गए हैं। उन्हें विनम्र प्रणाम प्रेम का पंथ सूना अगर हो गया, रह सकेगी बसी कौन-सी फिर गली? यदि खिला प्रेम का ही नहीं फूल तो, कौन है जो हँसे फिर चमन में कली? प्रेम को ही न जग में मिला मान तो यह धरा, यह भुवन सिर्फ़ श्मशान है, आदमी एक चलती हुई लाश है, और जीना यहाँ एक अपमान है, आदमी प्यार सीखे कभी इसलिए, रात-दिन मैं ढलूँ, रात-दिन तुम ढलो। प्रेम-पथ हो न सूना कभी इसलिए, जिस जगह मैं थकूँ, उस जगह तुम चलो। #गोपाल_दास_नीरज
वाह ! बहुत सुन्दर लगा सुनकर !
जवाब देंहटाएंशाम होते ही उसे सबने भुला डाला यहाँ
जवाब देंहटाएंवो जो सूरज की तरह घर घर सुबह करते रहे
जब तलक वो जिंदगी की जंग में शामिल रहा
मोर्चे दुश्वार थे लेकिन फ़तह करते रहे
बेहतरीन लगे डा. उर्मिलेश जी के ये अशआर..
बहुत खुबसूरत लगी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत शब्द भी कम है इस ग़ज़ल के लिए
जवाब देंहटाएंइस खूबसूरत गजल को पढ़वाने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं‘‘शाम होते ही उसे सबने भुला डाला यहाँ
जवाब देंहटाएंवो जो सूरज की तरह घर-घर सुबह करते रहे।’’
-यह शेर हमारे समाज के एक अकृतज्ञ समाज में बदल जाने की कहानी कहता है जहाँ वक्त पर आँखें फेर लेनेवाले अहसान फरामोश लोगों की बहुतायत है। बहुत उम्दा यह ग़ज़ल आपके सम्मोहक और मधुसिक्त स्वर में और भी प्रभावकारी हो गई है। मेरी अशेष शुभकामनाएँ!
डॉ उर्मिलेश जी की बहुत ही दर्द भरी ग़ज़ल है सोनरुपा जी
जवाब देंहटाएंआप की आवाज़ में भी इसे सुना ....
आभार....
डॉ उर्मिलेश जी की बहुत ही दर्द भरी ग़ज़ल है सोनरुपा जी
जवाब देंहटाएंआप की आवाज़ में भी इसे सुना ....
आभार....
वाह|||
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
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जवाब देंहटाएं♥
डॉ. उर्मिलेश जी की गज़लें अपने आप में मिसाल हैं ...
और आपकी आवाज़ भी ...
बेहतरीन गज़लकार आदरणीय डॉ. उर्मिलेश जी को नमन !
खूबसूरत गायिका आदरणीया सोनरूपा विशाल जी को सलाम !
आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया गजल को पसंद करने के लिए ,राजेन्द्र जी आपकी टिप्पडी की एक अलग ही अंदाज है !
जवाब देंहटाएंशब्द और स्वर दोनों कमाल ..... बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंडॉ उर्मिलेश बदायूं की ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश की शान थे ...
जवाब देंहटाएंआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया....बहुत बेहतरीन प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंबेशक खूबसूरत.....बेशक लाजवाब....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शेर सोनरूपा जी.... आपके परिवार और बदायूं को मिस करता हूँ.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर ....................
जवाब देंहटाएंलाजवाब!!!!
अनु
sweet voice too...........
हटाएंखूबसूरत गज़ल. लाजवाब.
जवाब देंहटाएंसुन्दर,अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंरचना पढ़वाने के लिए आभार ....
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ूबसूरत गज़ल !!
जवाब देंहटाएंएक नज़र मेरी कविता पर भी डालें..
www.belovedlife-santosh.blogspot.in
आपका स्वागत है.
Bahut Sunder Gajal, Sunker bahut accha laga
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल पढवाई आपने .
जवाब देंहटाएंati sundar...
जवाब देंहटाएंI heard abt lot...but today i visited ur blog its fab..i really liked a gazal Zindgi kuch is trh.............
जवाब देंहटाएंसोनरूपा जी ..आदरणीय डॉक्टर उर्मिलेश जी जो साहित्य हम सबको धरोहर के रूप में दे गए है वो वास्तव में जनता यानी आम आदमी का साहित्य है ...मेरा मतलब जनता का साहित्य का अर्थ जनता को तुरंत ही समझ में आने वाले साहित्य से हरगिज नहीं है अगर ऐसा होता तो किस्सा तोता मैना और नौटंकी ही साहित्य के प्रधान रूप होते ...उनका साहित्य कही कही प्रगतिशील और सर्वहारा वर्ग को भी समर्पित होता था ..अप्रोक्त ग़ज़ल मैंने पढ़ी और एक बार फिर से कह रहा हूँ की हमारे और आपके जैसे लोंगो टिपण्णी करने से पहले बहुत कुछ सीखना होगा बस इतना ही कह सकता हूँ की कई बार इस पढ़ने के बाद हमेशा नयी सी लगती है .....हाँ इतना जरूर कहूँगा की इस गज़ल को आपने अपने स्वर देकरइसमें चार चाँद लगा दिया है .....सादर
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