ग़ज़ल

ज़िन्दगी तुझको बसर कुछ इस तरह करते रहे 
रात दिन दुश्मन से जैसे हम सुलह करते रहे 

आईना चुपचाप अपना फैसला करता रहा
हम वकीलों की तरह खुद से जिरह करते रहे

इस तकलुफ्फ़ की वजह भी कोई तो होगी ज़रूर
याद वो आख़िर हमें क्यों बेवजह करते रहे

शाम होते ही उसे सबने भुला डाला यहाँ
वो जो सूरज की तरह घर घर सुबह करते रहे

जब तलक वो जिंदगी की जंग में शामिल रहा
मोर्चे दुश्वार थे लेकिन फ़तह करते रहे .....डॉ.उर्मिलेश 

टिप्पणियाँ

  1. वाह ! बहुत सुन्दर लगा सुनकर !

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  2. शाम होते ही उसे सबने भुला डाला यहाँ
    वो जो सूरज की तरह घर घर सुबह करते रहे

    जब तलक वो जिंदगी की जंग में शामिल रहा
    मोर्चे दुश्वार थे लेकिन फ़तह करते रहे

    बेहतरीन लगे डा. उर्मिलेश जी के ये अशआर..

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  3. बहुत खुबसूरत लगी पोस्ट।

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  4. खूबसूरत शब्द भी कम है इस ग़ज़ल के लिए

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  5. इस खूबसूरत गजल को पढ़वाने का शुक्रिया।

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  6. ‘‘शाम होते ही उसे सबने भुला डाला यहाँ
    वो जो सूरज की तरह घर-घर सुबह करते रहे।’’
    -यह शेर हमारे समाज के एक अकृतज्ञ समाज में बदल जाने की कहानी कहता है जहाँ वक्त पर आँखें फेर लेनेवाले अहसान फरामोश लोगों की बहुतायत है। बहुत उम्दा यह ग़ज़ल आपके सम्मोहक और मधुसिक्त स्वर में और भी प्रभावकारी हो गई है। मेरी अशेष शुभकामनाएँ!

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  7. डॉ उर्मिलेश जी की बहुत ही दर्द भरी ग़ज़ल है सोनरुपा जी
    आप की आवाज़ में भी इसे सुना ....
    आभार....

    जवाब देंहटाएं
  8. डॉ उर्मिलेश जी की बहुत ही दर्द भरी ग़ज़ल है सोनरुपा जी
    आप की आवाज़ में भी इसे सुना ....
    आभार....

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  9. डॉ. उर्मिलेश जी की गज़लें अपने आप में मिसाल हैं ...
    और आपकी आवाज़ भी ...

    बेहतरीन गज़लकार आदरणीय डॉ. उर्मिलेश जी को नमन !
    खूबसूरत गायिका आदरणीया सोनरूपा विशाल जी को सलाम !

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  10. आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया गजल को पसंद करने के लिए ,राजेन्द्र जी आपकी टिप्पडी की एक अलग ही अंदाज है !

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  11. शब्द और स्वर दोनों कमाल ..... बहुत बढ़िया

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  12. डॉ उर्मिलेश बदायूं की ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश की शान थे ...

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  13. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया....बहुत बेहतरीन प्रस्‍तुति...!

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  14. बहुत सुन्दर शेर सोनरूपा जी.... आपके परिवार और बदायूं को मिस करता हूँ.

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  15. बहुत बहुत सुन्दर ....................
    लाजवाब!!!!

    अनु

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  16. रचना पढ़वाने के लिए आभार ....

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  17. बेहद ख़ूबसूरत गज़ल !!

    एक नज़र मेरी कविता पर भी डालें..
    www.belovedlife-santosh.blogspot.in
    आपका स्वागत है.

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  18. I heard abt lot...but today i visited ur blog its fab..i really liked a gazal Zindgi kuch is trh.............

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  19. सोनरूपा जी ..आदरणीय डॉक्टर उर्मिलेश जी जो साहित्य हम सबको धरोहर के रूप में दे गए है वो वास्तव में जनता यानी आम आदमी का साहित्य है ...मेरा मतलब जनता का साहित्य का अर्थ जनता को तुरंत ही समझ में आने वाले साहित्य से हरगिज नहीं है अगर ऐसा होता तो किस्सा तोता मैना और नौटंकी ही साहित्य के प्रधान रूप होते ...उनका साहित्य कही कही प्रगतिशील और सर्वहारा वर्ग को भी समर्पित होता था ..अप्रोक्त ग़ज़ल मैंने पढ़ी और एक बार फिर से कह रहा हूँ की हमारे और आपके जैसे लोंगो टिपण्णी करने से पहले बहुत कुछ सीखना होगा बस इतना ही कह सकता हूँ की कई बार इस पढ़ने के बाद हमेशा नयी सी लगती है .....हाँ इतना जरूर कहूँगा की इस गज़ल को आपने अपने स्वर देकरइसमें चार चाँद लगा दिया है .....सादर

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