उन दिनों
उन दिनों
उन दिनों
चाँद भी
हथेलियों पर उतर आता था
उन दिनों
हथेलियाँ ख़ुशबुओं से महकती थीं
उन दिनों
हथेलियाँ बस दुआओं के लिए उठती थीं
उन दिनों
हथेलियों की नावों में
रंग बिरंगी तितलियाँ सवार रहती थीं
उन दिनों
हथेलियों के उठान
प्रेम के आवेग थे
आसमान पर उमड़े बादलों की तरह
उन दिनों
हथेलियों की रेखाएँ भी
ईश्वरीय मिलन के रास्ते थे
ये जादू था
चार हथेलियों का
जिसने हथेलियों पर प्रेम की फसल उगा ली थी
ये जादू था
चार हथेलियों का
जिसने समूची धरती को ख़ुद पर पनाह दे दी थी
जैसे जादू चल नहीं पाता बिना जादुई ताकत के
वैसे थम गया था चार हथेलियों का जादू
दो के होते ही
अब हथेलियाँ बदन का
हिस्सा भर थीं बस !
हथेलियों को महिमामंडित करती कविता बड़े सुन्दर विम्बों से रची गयी है!
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
मन के भावों का सुंदर संम्प्रेषण,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंशेअर करने के लिए आभार!
बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंकविता का जादू...
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी नज़्म है जी .. दिल को छु गयी ..शब्द जादू कर गये .
जवाब देंहटाएंऐसी सुंदर व उत्तम कविता को कई-कई बार "पढ़ना बहुत ज़रूरी है..."
जवाब देंहटाएंसुन्दर बिम्ब ..
जवाब देंहटाएं...हथेलियों की नावों में रंग-बिरंगी तितलियाँ सवार रहती थीं॰
जवाब देंहटाएंएक सुंदर काव्य-चित्र ,साधुवाद।
लिखना जरूरी है।
जवाब देंहटाएंलेकिन चोरों के भय से
ताले पड़े हैं तुम्हारे द्वार पर
कुछ शब्दों के अंगरखें रखे हैं
तुम्हारी कीमती कविता के इख्तियार पर
चेहरे से हथेलियां हटाओ
उजास को फैलने दो
बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंBeautiful!! :) :)
जवाब देंहटाएंacchi prastuti..
जवाब देंहटाएंhttp://yayavar420.blogspot.in/
अलग से लिखे चित्र की तरफ बार बार झांकना तो होगा ही |
जवाब देंहटाएंवैसे थम गया था चार हथेलियों का जादू
जवाब देंहटाएंदो के होते ही
अब हथेलियाँ बदन का
हिस्सा भर थीं बस !
....
बहुत गहरे ले गयी आपकी कविता
आभार आपका !!
बहुत प्यारी नज़्म....
जवाब देंहटाएंमन मोह गयी...
अनु
pahli baar aapke blog par aana hua...sarthak lekhan ka karya kar rahin hain aap..aapse bahut prerana milegi..
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कहा आपने -
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