उन दिनों

मेरी पसंदीदा पेंटिग कलाकार 'वर्तन आर्ट '





उन दिनों 





उन दिनों
चाँद भी
हथेलियों पर उतर आता था
उन दिनों
हथेलियाँ ख़ुशबुओं से महकती थीं
उन दिनों
हथेलियाँ बस दुआओं के लिए उठती थीं
उन दिनों
हथेलियों की नावों में 
रंग बिरंगी तितलियाँ सवार रहती थीं
उन दिनों
हथेलियों के उठान
प्रेम के आवेग थे
आसमान पर उमड़े बादलों की तरह
उन दिनों
हथेलियों की रेखाएँ भी
ईश्वरीय मिलन के रास्ते थे
ये जादू था
चार हथेलियों का
जिसने हथेलियों पर प्रेम की फसल उगा ली थी
ये जादू था
चार हथेलियों का
जिसने समूची धरती को ख़ुद पर पनाह दे दी थी
जैसे जादू चल नहीं पाता बिना जादुई ताकत के
वैसे थम गया था चार हथेलियों का जादू
दो के होते ही
अब हथेलियाँ बदन का
हिस्सा भर थीं बस ! 

टिप्पणियाँ

  1. हथेलियों को महिमामंडित करती कविता बड़े सुन्दर विम्बों से रची गयी है!
    सुन्दर!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत प्यारी नज़्म है जी .. दिल को छु गयी ..शब्द जादू कर गये .

    जवाब देंहटाएं
  3. ऐसी सुंदर व उत्तम कविता को कई-कई बार "पढ़ना बहुत ज़रूरी है..."

    जवाब देंहटाएं
  4. ...हथेलियों की नावों में रंग-बिरंगी तितलियाँ सवार रहती थीं॰
    एक सुंदर काव्य-चित्र ,साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. लिखना जरूरी है।
    लेकिन चोरों के भय से
    ताले पड़े हैं तुम्हारे द्वार पर
    कुछ शब्दों के अंगरखें रखे हैं
    तुम्हारी कीमती कविता के इख्तियार पर
    चेहरे से हथेलियां हटाओ
    उजास को फैलने दो

    जवाब देंहटाएं
  6. अलग से लिखे चित्र की तरफ बार बार झांकना तो होगा ही |

    जवाब देंहटाएं
  7. वैसे थम गया था चार हथेलियों का जादू
    दो के होते ही
    अब हथेलियाँ बदन का
    हिस्सा भर थीं बस !

    ....
    बहुत गहरे ले गयी आपकी कविता
    आभार आपका !!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत प्यारी नज़्म....
    मन मोह गयी...

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  9. pahli baar aapke blog par aana hua...sarthak lekhan ka karya kar rahin hain aap..aapse bahut prerana milegi..

    जवाब देंहटाएं

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