पापा को खत

पापा

मई का महीना बहुत कम लोगों को अच्छा लगता होगा, कितना गर्म,बेरौनक,सूनसान सा! लेकिन ये महीना मुझे कुछ ज़्यादा ही बुरा लगता है! क्यों कि आप मई में ही तो चले गए थे!तब से लगता न आने दूँ धूप की कोई किरण घर के अंदर, सारे पर्दे बंद रखूँ,न पता लगे मुझे कि गर्मी आ गयी है!बीत जाए ये मई किसी तरह !

पापा आप तो जानते ही हैं चंचल मन है मेरा !मैं पूजा करते समय एक ट्रिक आजमाती हूँ 108 बार जब सूर्यमंत्र का जाप करती हूँ तो सुबह का बाल सूर्य ज़हन में रखती हूँ जो राजमहल गार्डन में लगे बेल के पेड़ के पीछे से नारंगी- नारंगी झाँकता है!  लेकिन पापा ख़ास मई महीने में मैं जब भी इस नन्हे सूरज को याद करती हूँ मुझे 4 मई की वो भयानक सुबह याद आ जाती है जब आपको अलसुबह ब्रेन हेमरेज हुआ था! फिर किसी तरह मैं मंत्र पूरे कर पाती हूँ!  लेकिन पापा इधर पिछले कुछ सालों से मैं घर के अधिकतर सारे पर्दे खोलने लगी हूँ!पूरे साल चाहें गर्मी,बरसात हो या ठंड!मेरे कमरे के पर्दे पूरी रात खुले रहते हैं चाँद तारे सँग सोते हैं मेरे!

पापा मुझे डर भी नहीं लगता घनी रात से,झींगुर की आवाज़ से! सुबह जब सूरज की किरणों मेरे चेहरे पर पड़ती हैं तो मैं फूल सी खिल उठती हूँ!पापा खिड़की के शीशे पर सुबह सुबह ख़ूब चोंच मारती हैं चिड़ियाँ!जैसे मुझे जगाती हों!इनका शोर अब मेरी ज़रूरत बन गया है!  और फिर दिन भर बड़ा अच्छा लगता है मुझे बाहर झाँकते रहना! पापा आज सुबह की मेरे और आपके लाडले धेवते दिवम के बीच की बातचीत बताती हूँआपको-  

दिवम-मम्मी,दोपहर में कौन खोल कर रखता है पर्दे?

मैं- मैं रखती हूँ मैं!(हँसते हुए)

दिवम-टी.वी. तक पर धूप का रिफ्लेक्शन पड़ रहा है प्लीज़ बंद करो न पर्दे!मैं मूवी नहीं देख पा रहा ठीक से!

मैं-ओके बेटा ,करती हूँ बंद !लेकिन सामने कितनी चिड़ियाँ हैं ! इनकी चहल पहल देख न!डहेलिया,पिटूनिया की तो उम्र पूरी हो गयी,सूख गए ये !लेकिन इनसे बड़ा जी बहलता है मेरा!

दिवम मुस्कुरा देता है! पापा बच्चे हमेशा माँ के लाड़ले होते हैं लेकिन कभी कभी लगता है कि मैं भी बच्चों की लाड़ली माँ हूँ!  हाँ तो पापा इतनी देर में रोहित (हमारा सहायक) ने लॉन में पानी का छिड़काव शुरू कर दिया !रोहित 18-19 साल की बाली उमर के हैं इसीलिए कभी-कभी फिल्मी गाने गाते-गाते इतने खो जाते हैं कि होश ही नहीं रहता कि गमला पानी से लबालब हो चुका है! आज भी इन्होंने यही किया रैबीज पाम के घने पेड़ जिस पर अनगिन चिड़ियाँ रहती ,खेलती,शोर मचाती हैं उसको पानी देते समय शायद अपनी प्रियतमा की याद में खो गए और ज़्यादा पानी लगा बैठे !

लेकिन पापा थोड़ी देर में मैंने क्या देखा कि जहाँ थोड़ा पानी जमा हो गया था वहाँ चिड़ियाँ ख़ूब लोट लगा कर नहाने लगीं !कभी पँख झाड़तीं, कभी पानी पीतीं !  पापा तभी मेरे दिमाग़ में एक आयडिया आया कि क्यों न अपनी इन मित्रों को एक उपहार दिया जाए! मैंने झट से एक बड़ी प्याली बाज़ार से मंगवाई फिर मिट्टी में एक गड्ढा कर उसे उसमें फिट कर दिया! यानि मैंने एक छोटा सा बेबी तालाब उनके लिए तैयार कर दिया!  विशाल ने कहा कि तुम अब ऐसा करो कुछ बाजरे के दाने भी डाल दो फिर देखो जितनी चिड़ियाँ आती हैं उनसे कहीं ज़्यादा आएंगी!पापा मैं बड़ी ख़ुश थी कल का सोच कर!

लेकिन पापा ये क्या आज सुबह एक भी चिड़िया नहीं आयी! और इस समय भी शाम हो रही है लेकिन दिन भर में इक्का दुक्का ही चिड़ियाँ नज़र आईं!  पापा क्या इन्हें हम पर विश्वास नहीं? क्या इन्हें ये लगा कि हम इन्हें नुकसान न पहुँचा दें? पापा दिवम की तरह आप भी मुझे कुछ ज़्यादा ही पज़ेसिव या ज़्यादा ही सोचने वाला न मानियेगा प्लीज़!  पापा मुझे तो लगता है हम इंसानों के भीतर की चालाकियों ने,स्वार्थ ने,आत्म प्रेम ने इतना खुदगर्ज़ बना दिया कि इनको इतना प्यार देने वाली मैं भी इन्हें अपना बना नहीं पाई!आख़िर हूँ तो मैं भी एक इंसान ही न! कैसे कहूँ इनसे कि ये सब मैंने उनकी ख़ुशी के लिए किया!कुछ तो इन्हें ज़रूर महसूस हुआ है!

 पापा दिवम हँस रहा है कह रहा है आज वीकेंड है मम्मी.. घूमने गयी होंगी,आ जाएंगी! मैं मुस्कुरा दी हूँ,लेकिन भीतर-भीतर सोच रही हूँ कि बेनागे आने वाली मेरे चिड़ी चिड़ा कहाँ चले गए ?  पापा आज मई मुझे फिर बुरी लग रही है!

आपकी मीतू

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