प्रेमचन्द 'कल और आज' शब्दिता द्वारा विचार गोष्ठी का आयोजन
'ईंट का जवाब चाहें पत्थर हो ,सलाम का जवाब गाली तो नहीं है'।
-मुंशी प्रेमचंद
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने सही कहा था कि इतिहास राजा,रानियों,सेनापतियों,शूरवीरों का होता है लेकिन जनता की वेदना साहित्यिक कृतियों में ही वर्णित होती है।मुंशी प्रेमचंद ने उत्तर भारत की जनता की आशा-निराशा,पीड़ा-दोहन,रहन-सहन, मानसिकता सब जैसे जस की तस लिख दी।उनकी कृतियाँ तत्कालीन समाज की प्रामाणिक दस्तावेज़ हैं।
ऐसे प्रख्यात उपन्यासकार,कहानीकार प्रेमचन्द की स्मृतियों को दोहराने के लिए साहित्यिक संस्था 'शब्दिता' (बदायूँ ,उत्तर प्रदेश)ने ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस वार्ता में सभी ने सार्थक परिचर्चा के माध्यम से अपनी अपनी बात रखी।
पार्वती आर्य कन्या संस्कृत इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्या मधु शर्मा जी ने इस अवसर पर कहा-
हिन्दी कहानी के पितामह ने आम आदमी को अपनी रचना का विषय बनाया है।उनकी ह्रदय की वेदना को कागज पर उतारा है।
टिथौनस इंटरनेशनल स्कूल की संस्थापिका मधु अग्रवाल जी ने कहानी 'ईदगाह'में हामिद का मेले में जाकर अपने लिए कुछ न लाना लेकिन दादी के लिए चिमटा लाना मन द्रवित कर देता है और बहुत बड़ी सीख देता है।
कहानीकार श्रीमती अंजलि शर्मा ने कहा
आधुनिक भारत के शीर्ष साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने उपन्यास , नाटक , समीक्षा , लेख - संस्मरण आदि अनेक विधाओं में उन्होंने सृजन किया है , परन्तु कहानीकार के रुप में वह अत्यंत सराहे गए ।
साहित्यिक अभिरुचि सम्पन्न श्रीमती रीता अग्रवाल ने कहा-
मुंशी जी की 'बड़े घर की बेटी' कहानी नारी कोमलता, आत्मसम्मान एवं मायके के प्रति नेह को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत करती है।सचमुच प्रेमचंद की हर कृति आज भी हमें एक नया संदेश देती है।
देवराहा बाबा पब्लिक स्कूल में शिक्षिका श्रीमती गायत्री मिश्रा ने अपनी बात रखते हुए कहा-
मंशी प्रेमचन्द्र जी समृद्ध कहानीकार रहे है।
'दो बैलों की कथा' प्रेमचंद द्वारा लिखित रचना है। प्रेमचंद अपनी रचनाओं के माध्यम से संदेश देने में माहिर हैं। समाज को अपनी रचनाओं से कैसे जगाया जाए, यह उन्हें बहुत अच्छी तरह आता है।
श्री मुकुंद प्रेमी महिला सेवा समिति की सचिव श्रीमती उषा किरण मिनोचा भी प्रेमचन्द की कृतियों से बहुत प्रभावित हैं।उन्होंने कहा-
प्रेमचन्द मेरे पसंदीदा कहानीकार हैं।
ईदगाह.....बचपन में पढ़ी थी यह कहानी ।जब सिर्फ कहानी को ही जानते थे कहानीकार को नहीं ।इसके बाद कई कहानियां पढीं पर न जाने इस कहानी मे ऐसा क्या था कि स्मृतिपट्ल पर जो छाप इसकी बनी वह और किसी की नहीं ।
आकाशवाणी से जुड़ी रहीं एवं नाट्य प्रस्तुतियों में प्रवीण श्रीमती रीना सिंह प्रेमचन्द जी की प्रत्येक पँक्ति से प्रभावित हैं।उनके अनुसार आज के संदर्भ में उनकी कृतियों के पुनर्पाठ की आवश्यकता है।
गिन्दो देवी महिला महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ गार्गी बुलबुल ने 'निर्मला' उपन्यास को उद्घृत करते हुए कहा-
पति और पत्नी के रिश्ते में शक एक सुखी परिवार को कैसे बरबाद करता है , कथा सम्राट प्रेमचंद जी के निर्मला उपन्यास में इंगित आज भी प्रासंगिक है।
शिक्षिका श्रीमती ममता ठाकुर ने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये-
उन्होंने कहा कोरोना काल में इस में रंगभूमि को पुनः पढ़ने का समय मिला। इसमें उन्होंने नौकरशाही, पूंजीवाद के साथ जनसंघर्ष का तांडव,और सत्य, अहिंसा के प्रति आग्रह परतंत्र भारत में भी भारतीयता और राष्ट्रीयता को बहुत आगे ले जाता है
डॉ उर्मिलेश जनचेतना समिति की संरक्षक श्रीमती मंजुल 'उर्मिलेश' ने प्रेमचन्द के उपन्यास 'निर्मला' के परिप्रेक्ष्य में अपनी बात रखी।
लेखिका,कवयित्री डॉ शुभ्रा माहेश्वरी ने कहा-
मुंशी प्रेमचंद का कहानी साहित्य नारी जीवन के विभिन्न रंगों से अनुरंजित रहा आज की नारी सजी संवरी बैठी हुई है उसे सजग करने का श्रेय यदि प्रेमचंद को दें तो अतिश्योक्ति नहीं है।
श्रीमती मधु राकेश मुंशी जी के उपन्यास गबन की विस्तृत चर्चा की।
वंदना मिश्रा राजकीय महाविद्यालय में हिंदी प्रवक्ता के तौर पर कार्यरत हैं।उनके विचार में-
प्रेमचंद हिंदी कथा साहित्य के युग प्रवर्तक रचनाकार थे उन्होंने साहित्य को मनोविनोद का साधन मात्र ना मानकर उस के माध्यम से समाज में नैतिक ,सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक बदलाव लाने का प्रयास किया। वे देश में समाजवाद लाने की कल्पना कर रहे थे । कवयित्री उषा किरण रस्तोगी जी की भावाव्यक्ति कुछ इस रूप में व्यक्त हुई-
मंत्र मुंशी प्रेम चंद्र की एक उत्कर्ष एवं मर्मस्पर्शी कहानी है, जिसने मुझे मंत्र मुग्ध कर दिया जिसके वशीभूत मैंने मंत्र कहानी को कई बार पढ़ा है,
डॉ सरला ने कहा-
मुन्शी प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के ऐसे महान साहित्यकारो में थे जिन्होंने अपनी वाणी के पुरजोर से समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों पर अपनी लेखनी चलाई ।
पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर दीप्ति जोशी गुप्ता ने कहा-
मुन्शी प्रेमचन्द के साहित्य में तत्कालीन इतिहास साक्षात् बोलता है ।
श्री देवराहा बाबा पब्लिक स्कूल में उप प्रधानाचार्या के रूप में कार्यरत एवं साहित्य के प्रति ख़ूब अनुरागी शारदा बवेजा ने कहा-
बड़ी-से-बड़ी बात को सीधे व सरल व संक्षेप में कहना प्रेमचन्द्र के लेखन की प्रमुख विशेषता है ।
छवि रस्तोगी जी भी साहित्य में रुचि रखती हैं इसीलिए उन्होंने भी बहुत मन से अपनी बात रख कर विचार गोष्ठी को प्रवाहमान बनाये रखा,उन्होंने कहा-प्रेमचंद जी के नाम में ही " प्रेम" की अलख है जो हमारे ह्रदय को छू जाती है।
इस तरह इस बेहद सार्थक चर्चा के माध्यम से मुंशी प्रेमचन्द के कालजयी कृतित्व और व्यक्तित्व को श्रद्धापूर्वक स्मृत किया गया।
इस विचार गोष्ठी की संयोजिका सोनरूपा विशाल ने कहा कि हिन्दी साहित्य अमूल्य निधि मुंशी प्रेमचंद को जितना पढ़ो उतना ही उनकी समृद्ध क़लम के प्रति मानस श्रद्धा से भर उठता है।हमारा गर्व हैं प्रेमचन्द।
सोनरूपा ने सभी सदस्याओं का आभार व्यक्त किया और अपेक्षा की कि आगे भी इस तरह के समागम जारी रख कर हम अपने पूर्वजों को याद करें और अपने ज़हन को भी ऐसी स्वस्थ ख़ुराक दें।
#Munshi_Premchand
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