ज़िन्दगी की न टूटे लड़ी

 ||ज़िन्दगी की न टूटे लड़ी

प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी||


पीड़ा ने तो कवि ह्रदय को अपना स्थाई बसेरा स्वयं बना लिया।कवि क्या करे,उसे चाहे कितने ही सांसारिक,भौतिक सुख मिल जाएं लेकिन वो रहेगा बेचैन ही।बेचैन ये सारे सुख और  पाने के लिए नहीं बल्कि खोने के लिए स्वयं को कभी शब्दों के भीतर अर्थ बनकर,कभी खोजने के लिए संख्याओं में शून्य को,कभी सबकी पीड़ा में निज पीड़ा महसूस करने के कारण।

कुम्हार की चाक रुक जाएगी लेकिन कवि के ह्रदय के चाक पर निरन्तर भावनाओं की मिट्टी चढ़ी रहती है, गोल-गोल घूमती रहती है।ऐसा नहीं है उसे कविता स्वरूप बर्तन हमेशा चाहिए।कभी आकार मिल गया कविता का तो कुछ पल आराम फिर नया ख़ालीपन प्रारम्भ।


उसकी आम लोगों से अलग सोच उसे कुछ अलग सा बना ही देती है।उसको ना समझने वाले लोग उसे अजीब कहें उससे पहले वो इस फ़िक्र से बाहर आकर एक अपनी ही धुन में एक आंतरिक सुख तलाश लेता है।

एक दो दिन से गीतकार सन्तोषानन्द जी का इंडियन आइडल शो के सेट का एक भावुक कर देने वाला वीडियो वायरल हो रहा है।

आज उनके काँपते हाथ,चलने में अक्षम उनके पैर,सदी का सर्वश्रेष्ठ गीत देने पर भी आर्थिक दिक्कत और वृद्धावस्था में भी घर चलाने की विवशता,  पुत्र-पुत्रवधु की आत्महत्या जैसी कई पीड़ा दायक जीवन की रील जब दर्शकों के सामने धुली तो आँखों से आँसुओं का सैलाब बह निकला।

वाक़ई बहुत बड़ा दुख उन पर टूटा लेकिन उन्होंने पूरे हौसले और ज़िंदादिली से इस दुख का सामना किया।

वे विलक्षण हैं।हृदय की धमनियों ने अपने रक्त को क़लम में भरकर जब संतोषानन्द जी को सौंपा तो उन्होंने भी अपने हृदय से पूरा-पूरा न्याय किया है और अमर रचनाएँ रच दीं।

संतोषानन्द जी ने जो लिखा उसमें अपने ह्रदय का स्पंदन रख दिया।


ज़िन्दगी से मिले तमाम सुख-दुख से परे वो आज भी झूम-झूम कर अपने गीत गुनगुनाते हैं और लोग भी झूम-झूम कर उन्हें सुनते हैं अभिमंत्रित हो कर।


कुछ पाकर खोना है

कुछ खोकर पाना है 

जीवन का मतलब तो

आना और जाना है

दो पल के जीवन से

इक उम्र चुरानी है

जो बीत गया है वो

फिर दौर न आएगा

इस दिल में सिवा तेरे

कोई और न आएगा

घर फूँक दिया हमने

बस राख उठानी है

ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं 

तेरी मेरी कहानी है


आज मैं भी बेचैन हूँ

इसीलिए भी क्यों कि मैं उन दर्शकों की तरह संतोषानंद जी के अंतर्मन के कुछ हिस्सों से मैं और हमारा कवि परिवार अनभिज्ञ नहीं है उनमें आज भी सारी शारीरिक और मानसिक परेशानियों से ऊपर ख़ूब जी लेने की चाहत है।जिन्हें आज भी लोगों का प्यार उनको उनके घर की चौखट से बाहर निकलने के लिए व्याकुल करता है।

जब लोग कवि सम्मेलन के अंत में दीवाने होकर,मंत्रमुग्ध होकर उन्हें,स्टैंडिंग ओवेशन देकर उनसे उनके गीत सुनते हैं तब इस गीतकार के चेहरे की आभा देखने लायक होती है।

उसके चेहरे पर कोई भी तनाव हावी नहीं होता बल्कि उसके चेहरे पर उसके अंतर्मन से निकले शब्दों के अमृत का पान करते हुए लोगों की तृप्ति की आभा नज़र आती है।

सन्तोषानन्द जी कविसम्मेलन के रात्रि के पहर में भी एक दिनमान उगाने का हुनर रखते हैं।उनके गीत भी हमें ज़िन्दगी के कैनवास पर ज़िन्दगी के ही रंग भरने की प्रेरणा देते रहे हैं।

उनके गीतों में खोकर हमने ख़ुद को पाया है।

रोये हैं तो मुस्कुराए भी हैं।

और ऐसे आँसू

आत्मा को भी धो देते हैं

इसीलिए मुझे

रोना बिल्कुल बुरा नहीं लगता।

तृप्ति की मुस्कुराहट की कोई बराबरी नहीं।

और ये दोनों उपहार हमें संतोषानन्द जी ने दिए।


आज इस सरस्वती पुत्र की दशा को देखकर लोग भावविह्वल हो रहे हैं।

लेकिन इससे इतर आज कुछ लोग और मीडिया उनके स्वाभिमान को ताक पर रख कर ऐसे बड़ों शब्दों के गीतकार के लिए बहुत हल्के शब्दों के कैप्शन के साथ ख़बर परोस रहा है।उसके अनुसार आज वे आर्थिक तंगी के कारण भीख माँगने की स्थिति में आ गए हैं जबकि इस ख़बर में कोई सच्चाई नहीं है।हाँ वो इतने सम्पन्न नहीं हो पाए जितने अन्य फिल्मी गीतकार हो गए।शायद अपने फ़क़ीरना मिज़ाज के कारण और ये तो उस फिल्म इंडस्ट्री को भी सोचना था जिसे उन्होंने इतने अद्भुत गीत दिए। जिसने भी कल का एपिसोड देखा होगा उसने उस पूरे परिदृश्य को भावनात्मक होते हुए देखा होगा।उसके फलस्वरूप नेहा कक्कड़ का द्रवित होना देखा होगा।

नेहा कक्कड़ बहुत प्यारी इंसान हैं उनका संतोषानन्द जी को कुछ भेंट देना उनके लिए बहुत संतुष्ट कर देने वाला क्षण रहा होगा मैं यक़ीन के साथ कह सकती हूँ।

उनके स्वाभिमान,सरलता,सहजता,निश्चलता,पहनावे के लिए बहुत सारा सम्मान ही अपेक्षित है जो उन्हें भरपूर मिला भी।बस चुनिंदा लोगों को छोड़कर।

बस उनसे कहना है।उनकी भावनाएँ आपके उन्हें जज करने से आहत होंगी।बहुत कमज़ोर होता है कवि ह्रदय।ऐसे चकनाचूर मत कीजिये उन्हें।आज भी उन्हें कवि सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाता है।ख़ूब सम्मान दिया जाता है।कुछ आवाज़ें ये भी सुनी थीं कि शो वालों ने उनका मज़ाक बना दिया आदि-आदि।

मुझे याद है पिछले वर्ष श्री गोविंद दोदराजका जी के जमशेदपुर कवि सम्मेलन के आयोजन में वो

थे,सुदीप भोला भैया और मैं हम एक ही गाड़ी में थे राँची से जमशेदपुर तक गए थे।

उसी दिन रानू मंडल वाला एपिसोड वायरल हुआ था जिसमें वो उनका गीत गा रही हैं और संगीतकार हिमेश रेशमिया ने इसी शो के सेट पर उनको एक गीत गाने का ऑफर दिया था।

यात्रा के दौरान लोगों के लगातार उन पर फोन आ रहे थे।उनको अपने कंपकपाते हाथों की वजह से बार-बार फोन उठाने में दिक्कत हो रही थी।

एक ढ़ाबे पर गाड़ी रुकी तो उन्होंने एक दो फोन रिसीव कर ही लिए।उधर से आवाज़ आयी "दादा,आपका गीत पूरे देश में एक बार फिर धूम मचा रहा है।हिमेश रेशमिया उस सिंगर को अपने साथ गवा रहे हैं।"

अब दादा क्या जाने कौन हिमेश रेशमिया।

बोले-कौन दिनेश?

मैं नहीं जानता 

अरे यार फोन रखो

और पकौड़े खाने लगे।

ऐसे हैं फक्कड़,मस्त और फ़क़ीरना संतोषानन्द जी।


इसीलिए कुछ इस तरह की बातें सुनकर लगा कि

हर बार कुछ न कुछ कहना ज़रूरी नहीं होता।

जिस समय आप उन क्षणों के साथ यात्रा कर रहे होते हैं उस समय जो भाव आपके भीतर आएं उन्हें वहीं अपने भीतर जज़्ब कर देना चाहिए।

उनका बाद में मंथन जब बुद्धि के द्वारा होता है तब दिल ख़ुद को हारा हुआ महसूस करता है।

कभी-कभी दिल का जीतना बहुत अच्छा होता है।

वो लोग जिन्हें मंच बाज़ार लगता है उनके लिए भी ये एक संदेश है कि लोगों के दिल में जगह केवल किताबों में लिखने से,जबरन टटके बिम्ब लाने से या कविता के व्यावसायिक कौशल से नहीं बनती।सारे बाज़ार,सारी समीक्षाएँ,सारी स्थापनाएँ बौनी हो जाती हैं ऐसा अमर लिखने वालों के समक्ष।

संतोषानन्द जी को हम सब का आगे भी साथ चाहिए,मंच का उत्सवी परिवेश चाहिए,श्रोताओं के उनके गीतों में डूबे हुए स्वर चाहिए।

प्रसन्नता है कि हमारा कवि परिवार उनका ख़ूब ख़याल रखता है,प्यार करता है,साथ चलता है,साथ देता है।उन्हें अकेला नहीं छोड़ता।इसके बरक्स उन्होंने हमें क्या दिया है इस अनिवर्चनीयता के साथ...|


🌼सोनरूपा

~कल फरवरी की रात २०२१


#IndianIdol

#SantoshAnand


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