कुछ यादें आपके साथ ..........


आज पापा की सातवीं पुण्यतिथि है ना जाने कितनी बार सोचा कि ये दिन अगर कलेंडर से मिट जाये तो कितना अच्छा हो या क्यों ना वो पल जब उनकी साँसें थमी थी वो पल वक़्त की अल्मारिओं में रखे हुए पलों के हिसाब से मिट जाये ......जानती हूँ ऐसा कभी भी नहीं होगा ...............इसीलिए ये बचपना भी  दोहराना  छोड़ दिया है |

 हम जल्दी ही उनके नाम का एक पेज बना रहे हैं 'डॉ-उर्मिलेश '.....जिसमें हम उनके कुछ वीडियोज,फोटोस ,कवितायेँ ,संस्मरण ताजा करेंगे ......हालाँकिहम कुछ ही वीडियोज एकत्र कर पायें हैं फिर भी कोशिश रहेगी कि उनसे जुड़े हर छुए अनछुए पहलुओं से हम आपको मिलवा सकें ,और जल्दी ही उनकी बेबसाइट भी आपके सामने होगी ......

पिछले एक दशक से जिस तरह तकनीक के द्वारा ,सोशल साइट्स के द्वारा  लेखकों और कवियों का पाठकों से सीधा साक्षात्कार होता दिखता है उसे देख कर मेरा भी मन होता है कि हम  भी पापा के कृतित्व और व्यक्तिव को आने वाली पीढ़ी तक ले के जायें ... मैं जानती हूँ कि उनको सुनने वाले श्रोता,उनको पढ़ने वाले उनके पाठक लाखों में हैं फिर भी ये साहित्यिक सिलसिला यहाँ भी जारी रहे ऐसी कामना है  ......

हाँ ये हमारा सौभाग्य ही है कि ‘महात्मा ज्योतिबाफूले रूहेलखंड विश्वविघ्यालय’ के बी.ए. के छात्र-छात्राएँ उन्हें कोर्स में पढ़ रहे हैं ....

इसी कड़ी में मैं आज आप सब के साथ एक वीडियो आज शेयर कर रही हूँ जो दिल्ली दूरदर्शन के साहित्यिक कार्यक्रम ‘पत्रिका’ का है इस कार्यक्रम में प्रख्यात गीतकार आदरणीय डॉ.कुंअर बैचैन जी ,मेरठ विश्वविद्यालय से  डॉ.नवीन सिंह लोहिनी जी ,प्रख्यात साहित्यकार डॉ.सुशील सिद्धार्थ जी ने पापा के सृजन और व्यक्तिव पर अपने विचार एवं उनसे जुड़े संस्मरण साझा किये हैं साथ ही उनकी कुछ गजलों का मैंने भी सस्वर पाठ किया है .........

आप सब भी अगर देखेंगे सुनेंगे तो मुझे भी अच्छा लगेगा ....................................

टिप्पणियाँ

  1. आपके प्रयास के लिए शुभकामनाएं.. यह एक पुत्री का अपने पिता के प्रति प्रेम ही नहीं, एक साहित्यकार को श्रद्धांजलि भी होगी।

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  2. ऐसा लगता है जैसे पास ही बैठे उनके मधुर गीत सुन रहे हों ...

    ह्रदय में टीस मन में वेदना तन में जलन होगी
    हमें युग युग रुलायेंगी तुम्हारी वे भरी आँखें !

    नमन उर्मिलेश भाई को ...

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  3. तू इन बूढ़े दरख्तों की हवाएँ साथ रख लेना.
    सफ़र में काम आएँगी दुआएँ साथ रख लेना
    बहुत खूब !

    आपके पिता की ग़जलें बेहद सहज होते हुए भी अर्थपूर्ण और गेय होती थीं इसलिए वो किसी भी पाठक के दिल को छूने की क्षमता रखती हैं। उनके बारे में जानकर अच्छा लगा। मेरी ओर से उन्हें विनम्र श्रृद्धांजलि।

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  4. आपके इस प्रयास की सफलता के लिए शुभकामनाएं ...

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  5. डा. उर्मिलेश जी का नाम साहित्य जगत में सदा जीवंत रहेगा।
    उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांसुमन अर्पित करता हूं।

    आपके इस प्रयास के लिए शुभकामनाएं।

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  6. बहुत सराहनीय प्रयास .... बहुत सुंदर गजल

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  7. aapke papa ji ki saatvin poonytithi par vinmr shraddhaanjali.
    aapke papa ji ki gajalen aur aapka gaayan sunkar man bhav
    vibhor ho gaya hai.

    aapki is prastuti ke liye haardik aabhar.

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