बाँटना ही है तो थोड़े फूल बाँटिये (डॉ. उर्मिलेश)
भूलकर भी न बीती भूल बाँटिये
सत्ता हेतु राम न रसूल बाँटिये
भारत की धरती न धूल बाँटिये
भेदभाव भरे न उसूल बाँटिये
एकता की नदी के न कूल बाँटिये
प्रेम नाव के ना मस्तूल बाँटिये
लाठी-तलवार न त्रिशूल बाँटिये
बाँटना ही है तो थोड़े फूल बाँटिये
फूल जो हमें नई उमंग देते हैं
जिंदगी जीने का नया ढंग देते हैं
एकता के विविध प्रसंग देते हैं
गंध-मकरंद और रंग देते हैं
आजीवन जो हमारे काम आए हैं
सारे फूल धरती माता के जाये हैं
उन्हें छोड़ व्यर्थ ना बबूल बाँटिये
बाँटना ही है तो थोड़े फूल बाँटिये
जिन हाथों को देनी थी तुम्हें रोटियां
उनमें थमा रहे हो तुम लाठियां
सत्ता हेतु तुम्हारी ये ख़ुदगर्ज़ियाँ
लोकतंत्र की उड़ा रही है खिल्लियां
क्या मिलेगा तुम्हें इस कारोबार में
हिंसा बांटते हो बुद्ध के बिहार में
शर्म हो तो बुद्ध के उसूल बाँटिये
बाँटना ही है तो थोड़े फूल बाँटिये
एक ओर खड़े हैं विहिप के त्रिशूल
दूजी ओर मिल्लत कौंसिल के त्रिशूल
ये न किसी नबी के न शिव के त्रिशूल
ये हैं मानवता के क़ातिल के त्रिशूल
जबकि हमारी मिसाइल त्रिशूल है
ऐसे में त्रिशूल बांटना फिजूल है
हो सके तो प्यार के स्कूल बाँटिये
बाँटना ही है तो थोड़े फूल बाँटिये
सारे देश नए अविष्कार कर रहे
प्रगति का रोज चौड़ा द्वार कर रहे
तुम सोलहवीं सदी से प्यार कर रहे
तलवार की प्रखर धार कर रहे
तलवार जिसने रचे हैं इतिहास
एटम के युग में क्या आएगी वो रास
व्यर्थ उसको ना ऊल-ऊल बाँटिये
बाँटना ही है थोड़े फूल बाँटिये
तुमने आदर्श स्वार्थ वाले दिए हैं
लाल कोंपलों को भाग्य काले दिए हैं
खौफनाक बारूदी उजाले दिए हैं
हत्या-लूट-घूस औ घोटाले दिए हैं
अब हिंसा बाँटोगे तो हिंसा पाओगे
एक दिन गोलियों से भूने जाओगे
इसलिए प्यार के दुकूल बाँटिये
बाँटना ही है थोड़े फूल बाँटिये
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-11-2020) को "असम्भव कुछ भी नहीं" (चर्चा अंक-3900) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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मंत्रमुग्ध करती रचना - - नमन सह।
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