मुझको मंज़िल तक ले जाने वाले सब गलियारे प्रिय हैं

 सूर्य उदय के बानक बनकर आये जो अँधियारे प्रिय हैं।

मुझको मंज़िल तक ले जाने वाले सब गलियारे प्रिय हैं।
जाने कितनी मंशाओं ने
आरोपों की झड़ी लगाई
मेरी स्वीकृति के द्वारे पर
विद्वेषों की कड़ी लगाई
मुझे देखकर चुभन सह रहे नयन मुझे पनियारे प्रिय हैं।
मुझको मंज़िल तक ले जाने वाले सब गलियारे प्रिय हैं।
आत्मचेतना की क्यारी में
मेरे श्रम के फूल खिले जब
उन्हें देख अनुकूल हवाओं के
भी रुख़ प्रतिकूल मिले तब
चकित हुई थी किंतु आज वो स्याह मुझे उजियारे प्रिय हैं।
मुझको मंज़िल तक ले जाने वाले सब गलियारे प्रिय हैं।
प्रश्न न होते तो उत्तर देने
को क्या मैं उद्यत होती
समय नहीं जो अवसर देता
क्या ख़ुद से मैं अवगत होती
मुझको संकल्पित नद करते ये सारे नदियारे प्रिय हैं।
मुझको मंज़िल तक ले जाने वाले हर गलियारे प्रिय हैं।
मुझे विरोधों,अवरोधों ने
नित नूतन संकल्प दिए हैं
जिन तीरों से घाव मिले
मैंने उनसे ही घाव सिए हैं
सुदृढ़ हुई जिन पर चलकर मैं कंटक वो अनियारे प्रिय हैं।
मुझको मंज़िल तक ले जाने वाले हर गलियारे प्रिय हैं।
सोनरूपा
२२-१२-२१
{मुख़ालफ़त से मेरी शख़्सियत सँवरती है
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूँ
~बद्र साहब
बस इतनी सी बात है.}
नदियारे-नदी के आसपास का क्षेत्र
अनियारे-कँटीले,पैने
पनियारे-पानी से भरे हुए

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