तुम निश्चिंत रहना : श्री किशन सरोज

 तुम निश्चिंत रहना

कविता से प्रेम आपको स्वयं से भी प्रेम करना सिखा देता है। आप जब व्यस्त ज़िन्दगी से कुछ पल कविता के लिए देते हैं तो अपरोक्ष रूप से वो समय आप ख़ुद को दे रहे होते हैं। अपने ह्रदय,अपने मन को दे रहे होते हैं।
आज की सुबह हर सुबह जैसी ही व्यस्त थी लेकिन मुझे कुछ पल चुराने थे अपने बेहद प्रिय गीतकवि आदरणीय श्री किशन सरोज जी की स्मृतियों में एकाग्र होकर उनके शब्दों के पूजन के लिए। सो मैंने चुरा ही लिए। अपने स्वर में किशन सरोज जी का गीत गाकर मन तृप्त है। उनका हर गीत प्रेम की आराधना है। आज उनकी प्रथम पुण्यतिथि है।
अंकल अपनी सोनरूपा बिटिया का प्रणाम स्वीकारिये। हम सब बहुत याद करते हैं आपको।



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