|| हिन्दी कविसम्मेलनों में कवयित्रियों की गौरवशाली परम्परा || सावित्री शर्मा

 || हिन्दी कविसम्मेलनों में कवयित्रियों की गौरवशाली परम्परा ||

षष्टम पुष्प : सावित्री शर्मा

"जी करता है नेह जियें
एकाकीपन खलता।
कितना कुछ भी करें
हमारे संग संग चलता"
सावित्री शर्मा गीत विधा की अत्यंत सम्वेदनशील कवयित्री रही हैं।2 अगस्त 1936 को लखनऊ में जन्मी श्रीमती सावित्री जी ने लखनऊ विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की एवं भातखण्डे विश्वविद्यालय से संगीत गायन की भी विधिवत शिक्षा प्राप्त की।
श्रीमती सावित्री शर्मा जी का पहला काव्य संग्रह 'अक्षरा' नाम से प्रकाशित हुआ।प्रथम काव्य कृति के साथ ही उनका नाम उन कवियों में गिना जाने लगा जिनका काव्य मंचों पर भी स्वागत होता था और उनकी कृतियों के माध्यम से पाठकों और समीक्षकों द्वारा भी उन्हें ख़ूब सराहा जाता।
साहित्यिक पत्रिका 'नवनीत'के पूर्व सम्पादक डॉ. गिरिजा शंकर त्रिवेदी कहते हैं-
'पिछले तीन दशकों में सावित्री जी ने हिन्दी काव्य-उपवन में अपने लिए एक विशिष्ट स्थान बना लिया है।मंच,रेडियो,दूरदर्शन,पत्र-पत्रिकाओं आदि प्रचार-माध्यमों ने उन्हें मुक्त कंठ से सराहा और श्रोताओं ने मनोमुग्ध भावना के साथ उन्हें गुनगुनाया है।' सावित्री शर्मा जी अस्सी के दशक में बहुत ही चर्चित और मंच का स्थापित नाम रहीं।लखनवी नफ़ासत इनके भीतर भरी हुई थी।
काव्य सृजन के साथ-साथ सम्पादन में रुचि रखने वाली सावित्री जी ने इंदिरा गांधी की स्मृति में देश-विदेश में प्रकाशित कविताओं को 'एकता का संकल्प' शीर्षक ग्रन्थ में संकलित एवं सम्पादित किया।मुम्बई से प्रकाशित 'साहित्य सुधाकर' की सम्पादक एवं 'उत्तर प्रदेश के प्रमुख कवि कवयित्रियाँ' नामक ग्रंथ की परामर्शदात्री समिति की सदस्या भी रही।
सावित्री जी की प्रमुख कृतियाँ अँजुरी भर धूप,अक्षरा,बाँधो मन मचले न,प्रवासी लौट आओ,चन्दनवन की नागफनी,बाँधी डोर अनुराग की,पाँच पोर की बाँसुरी,सुनो तथागत, खेल-खेल में,दाँव हारी द्रौपदी है ज़िन्दगी आदि हैं।
हिन्दी साहित्य परिषद द्वारा सम्मानित सावित्री जी को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा महादेवी वर्मा नामित पुरस्कार उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ही साहित्य भूषण सम्मान भी प्राप्त हुआ है।
सावित्री जी बहुत जीवटता वाली स्त्री रहीं।दुर्भाग्य से 3 वर्ष की आयु में ही पिता का साया सर से उठ गया।माँ और बुआ की छत्रछाया में बचपन बीता।गाँव में रहती थीं लेकिन माँ ने अच्छी परवरिश के लिए शहर में बुआ के पास भेज दिया।बुआ से इन्हें बहुत स्नेह मिला।सावित्री जी का विवाह सातवीं कक्षा में थीं तभी हो गया लेकिन फिर पति के सहयोग और साथ से इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की।ईश्वर की अनुकम्पा रही कि इन्होंने अपना जीवन ख़ूब समृद्ध और ख़ुशहाल जिया।30 अगस्त 2012 को सावित्री जी इस नश्वर संसार से विदा हो गईं।
वो इस रूप में सौभाग्यशाली रहीं हैं कि उनके पुत्र और पुत्री उनके बाद उनकी साहित्यिक विरासत को बख़ूबी सम्भाले हुए हैं।इनके पुत्र श्री रवि भट्ट अवध के इतिहासकार हैं और इनकी बेटी श्रीमती मृदुला भारद्वाज जी लखनऊ रंगमंच की वरिष्ठतम कलाकारों में से एक हैं।एक पुत्र शरद शर्मा जी एक प्रतिष्ठित संस्थान से जी.एम. पद से रिटायर्ड हैं और छोटे पुत्र पीयूष शर्मा कैनेडा में बड़ा कारोबार कर रहे हैं।
सावित्री जी का रचना संसार अनूठा है।उनके पास सर्वथा नई और ताज़ी अनुभूतियाँ हैं।संघर्षमयी जीवन के बावजूद उन्होंने कविताओं में उज्ज्वल भविष्य के भाव बाँचे,सदा सकारात्मक रहीं।उनके गीत प्रेम की सुगंध से सुवासित रहे।साथ ही अपनी वेदना का पारदर्शी अंकन कर ,अपने संत्रास को क़लम का स्पर्श देकर उन्होंने अनगिनत भावप्रवण गीत रच डाले।
मुझे ख़ुशी है कि इस शृंखला को शुरू करने से मुझे भी इतनी समृद्ध कवयित्रियों के कृतित्व और व्यक्तित्व से रूबरू होने का अवसर मिल रहा है।
मैं आभार देती हूँ प्रसिद्ध व्यंग्यकार,गीतकार डॉ.सर्वेश अस्थाना जी का जिन्होंने मेरी ये शृंखला देख,सुनकर मुझे सावित्री जी के नाम से अवगत करवाया एवं उनसे सम्बंधित जानकारियाँ एकत्र करके दीं।
सावित्री जी के दृढ़ संकल्पी व्यक्तित्व को प्रणाम करते हुए उनका एक गीत उन्हीं को समर्पित कर रही हूँ।
|| गीत ||
प्रिय सपनों में सौ सौ रंग भरे
इन्द्र धनुष लहरे अम्बर में
हँस हँस बात करे।
मधु निर्झर की बूंद बूंद से
भीग रहा तन मन।
बिन पायल ही गूँज रही है
कानों में रुनझुन।।
बाँध नहीं पाते बेसुध से
छंद छंद बिखरे।
प्रिय सपनों में सौ-सौ रंग भरे।
एक नदी बहती अन्तस् में
अतिशय वेगवती।
तटबंधों पर बैठ निहारे
संयम यती व्रती।।
लजवन्ती लहरें छू लें तो
परत परत उघरे।
प्रिय सपनों में सौ सौ रंग भरे।
~ सावित्री शर्मा


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