|| हिन्दी कविसम्मेलनों में कवयित्रियों की गौरवशाली परम्परा || विद्यापति कोकिल

 || हिन्दी कविसम्मेलनों में कवयित्रियों की गौरवशाली परम्परा ||

सप्तम पुष्प : विद्यापति कोकिल




मुझको तेरी अस्ति छू गई है
अब न भार से विथकित होती हूँ
अब न ताप से विगलित होती हूँ
अब न शाप से विचलित होती हूँ
जैसे सब स्वीकार बन गया हो।
मुझको तेरी अस्ति छू गई है
ये समय वो था जब पढ़ने लिखने वाले लोग ही काव्य मंच की शोभा हुआ करते थे।विद्यापति 'कोकिल' जी भी एक ऐसी कवियत्री थीं जिन्हें साहित्य में एक प्रतिष्ठित रचनाकार के रूप में याद किया जाता है।अपने समय की वे बहुत नामचीन कवयित्री मानी जाती थीं।सिद्धि और प्रसिद्धि दोनों उन्हें प्राप्त हुईं।
विद्यावती कोकिल जी का जन्म 26 जुलाई 1914 को मुरादाबाद के हसनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
गीत की उदात्त लेखिका विद्यावती ‘कोकिल’ के जीवन का अधिकांश समय प्रयागराज में बीता। आर्य समाजी तथा देश-भक्त परिवार में जन्म लेने वाली कोकिल जी का स्वयं भी स्वतंत्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान रहा।इस दौरान उन्हें कारावास यात्रा भी की।इन्होंने जनहित में अनेक कार्य किये।कोकिल जी का कविता लेखन बचपन में ही प्रारम्भ हो गया था।स्कूल-कॉलेज में आते-आते वो परिपक्व लिखने लगीं। अखिल भारतीय काव्य-मंचों एवं आकाशवाणी केन्द्रों के माध्यम से इनकी प्रतिभा और विस्तारित हुई और इनका नाम इनकी रचनात्मकता की परिचय बन गया। इन्होंने पांडिचेरी के ‘अरविन्द आश्रम’ में भी समय व्यतीत किया और अरविन्द दर्शन से ये बहुत प्रभावित रहीं।इनके काव्य में भी उनके दर्शन का प्रभाव है।
विद्यावती 'कोकिल' मूलत: एक गीतकार हैं।मन की सम्वेदनाओं को सहजता और तरलता से व्यक्त कर देना उनके गीतों की विशेषता है।नारी मन की अनुभूतियों को कोमल शाब्दिक परिधान दिया है उनके गीतों ने।
विद्यावती 'कोकिल' की प्रारम्भिक रचनाओं का प्रथम काव्य-संकलन प्रेम और जीवन से ओतप्रोत गीतों का संग्रह था,जो 1940 में प्रकाशित हुआ।सन 1942 ई. में 'माँ' नाम से इनका द्वितीय काव्य-संग्रह सामने आया। सम्पूर्ण विश्व को प्रजनन की एक महाक्रिया मानकर मातृत्व की विकासोन्मुख अभिव्यक्ति एवं लोरियों के माध्यम द्वारा 'माँ' में जीव के एक सतत विकास की कथा का कहना इसकी रचना का उद्देश्य रहा।
सन 1952 में इनकी 'सुहागिन' नाम की कृति प्रकाशित हुई।इस कृति ने विद्यापति 'कोकिल' जी के भीतर के गीतकार के उजाले से पाठकों का परिचय हुआ।मन विभोर कर देने वाले गीत थे इस संग्रह में।मानव का मनोविज्ञान,सत्य की खोज,अच्छाई की आकांक्षाएं,नारी का अंतर्मन को मुखरित करती रचनाएँ जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।
सुहाग गीत' (लोकगीत संग्रह) सन 1953 में प्रकाशित हुआ। 'पुनर्मिलन' सन 1956 में सामने आया। इन गीतों में कवयित्री ने उस प्रियतम के साक्षात मिलन का स्पर्श प्राप्त किया है, जिसकी छाया के पीछे वह जीवन भर भागी है। नवम्बर, सन 1957 में प्रकाशित 'फ्रेम बिना तस्वीर' नामक नाटक एक सत्यान्वेषी इंगलिश कुमारी का नाट्याख्यान है, जिसका घटनास्थल इंग्लैंड है।
सप्तक' एक विस्तृत भूमिका के साथ अरविन्द की सात कविताओं का मूल युक्त हिन्दी अनुवाद है, जो सन 1959 में सामने आया।
विद्यापति 'कोकिल' जी का एक गीत-
कौन गाता जा रहा है?
मौनता को शब्द देकर
शब्द में जीवन संजोकर
कौन बंदी भावना के
पर लगाता जा रहा है
कौन गाता जा रहा है?
घोर तम में जी रहे जो
घाव पर भी घाव लेकर
कौन मति के इन अपंगों
को चलाता जा रहा है
कौन गाता जा रहा है?
कौन बिछुड़े मन मिलाता
और उजड़े घर बसाता
संकुचित परिवार का
नाता बढ़ाता जा रहा है
कौन गाता जा रहा है?
भूमिका में आज फिर
निर्माण का संदेश भर कर
खंडहरों के गिरे साहस
को उठाता जा रहा है
कौन गाता जा रहा है?
फटा बनकर ज्योति–स्रावक
जोकि हिमगिरी की शिखा–सा
कौन गंगाधार–सा
अविरोध बढ़ता जा रहा है
कौन गाता जा रहा है?
~ विद्यावती कोकिल



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