जब रिश्ते में साँस नहीं है

 ||गीत||

जब रिश्ते में साँस नहीं है
फिर कैसे स्पंदन होगा।
बेल तभी तो पुष्पित होगी
जब कोई आलम्बन होगा।
जो अनुभूत किया है मैंने
उसको तो स्वीकारूँगी मैं
जो स्पष्ट नज़र आया है
उसको क्यों भ्रम मानूँगी मैं
जब सब बादल छँटे हुए हैं
क्यों बूँदों का नर्तन होगा।
अब जब कोई चाह नहीं है
तो आख़िर क्यों राह तकूँ मैं
जब निर्णय की छाँह तले हूँ
क्यों विचलन की धूप चखूँ मैं
इन्हीं कुन्दनी किरणों से
मेरे घर में आलेपन होगा।
प्रेम बहुत बारीक भाव है
प्रेम नहीं स्थूल तत्व है
प्रेम अकथ को है सुन लेना
प्रेम विरल है,प्रेम सत्व है
जो अनुभूत स्वत: करना था
उसका भी आवाहन होगा ?
आस बाँधने,बाट जोहने
का अब कोई अर्थ नहीं है
मुझमें अब पीड़ा सहने का
चुटकी भर सामर्थ नहीं है
मेरे इस स्वाश्रयी मनन का
मुझसे ही अभिनंदन होगा।
मैं इक पुस्तक नहीं कि जिसको
जब मन हो तब पलटा जाये
मैं अब वो किरदार नहीं हूँ
जो तुमको जी भर दुलराये
मुझमें उपजी निस्पृहता में
तनिक नहीं परिवर्तन होगा।
बेल तभी तो पुष्पित होगी
जब कोई आलम्बन होगा।


सोनरूपा
२९ जुलाई २०२१



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