||हिन्दी कवि सम्मेलन और कवयित्रियों की गौरवशाली परम्परा||

 ||हिन्दी कवि सम्मेलन और कवयित्रियों की गौरवशाली परम्परा||

"क्यों न किताबों से फूल निकालें"
हिन्दी कवि सम्मेलनों के गौरवशाली इतिहास पर यदि कुछ जानना चाहा तो पढ़ने के लिए सामग्री भी ख़ूब मिली और चर्चाएँ, संस्मरण भी कम न थे इसे बेहतर तौर से जानने के लिए।
मेरे साथ एक प्लस पॉइंट ये भी था कि मेरा परिवार भी कविता से दादा-परदादा से लेकर अब तक जुड़ा रहा है लेकिन कवि सम्मेलनीय परम्परा के एक बड़े नाम के रूप में पिता जी का ही उल्लेखनीय स्थान बना।
तो थोड़ी बहुत जानकार इस तरह से भी हुई मैं।हालाँकि एक बच्ची की तरह मतलब नहीं रखती थी इस सम्बंध में और रखती भी क्यों ?
ख़ैर पिछले कुछ वर्षों में जो कुछ जानना चाहा उसमें से ये भी एक जिज्ञासा थी कि कवि सम्मेलनों में वो कौन-कौन सी कवयित्रियाँ थीं जिन्होंने इस गौरवीली परम्परा में अपनी उपस्थिति और कविताओं से एक उत्कृष्ट कवयित्री के रूप में कवि सम्मेलन में प्रतिनिधित्व किया और आदर्श बन गयीं उनके लिए जिन्हें कविता और मंच के ग्रेस से सरोकार था।
ये तो स्प्ष्ट है कि कविता उन्हीं बातों का सरल,ग्राह और सुंदर रूप है जिसे हमारे धर्मगुरु,दार्शनिक,इतिहासकार,राजनीतिज्ञ,शिक्षाविद अपने अपने तरीक़े से कहते हैं।
कविता इन्हीं सब को इतने दुलार और हौले से कह जाती है कि लोग इन विषयों की शुष्कता से कम कविता के मनोहारी कहन की ओर ज़्यादा आकृष्ट होते हैं।
इसीलिए कविता हमेशा से लोगों के ह्रदय के बहुत पास रही और जब एक कवयित्री कविता लिखती है तो वो अधिक भावपूर्ण होती है।यूँ भी कविता हमेशा से भावना प्रधान रही है।पुरुषों में स्त्रियों जैसी भावुकता नहीं मिल सकती।
लेकिन विडंबना ये कि कवि सम्मेलनों में भी हर क्षेत्र की तरह पुरुषों की संख्या ही ज़्यादा स्त्रियाँ बहुत कम रही।यानि यहाँ भी कवयित्रियाँ कम।उसके कई कारण रहे लेकिन उनका उल्लेख करना विषयांतर हो जाएगा।मेरा मुख्य उद्देश्य हिन्दी कवि सम्मेलन की कविता में सिद्ध हस्त गरिमामयी,विदुषी कवयित्रियों का पुनः स्मरण है।
कुछेक नाम हैं जिन्हें आँख बंद करके प्रत्येक व्यक्ति बता देगा जिसे हिन्दी साहित्य का ज़रा भी ज्ञान होगा कि ये वो नाम हैं जो कवि सम्मेलन और साहित्य की बड़ी विदुषी कवयित्रियाँ रही हैं जैसे महादेवी वर्मा,सुभद्रा कुमारी चौहान।
लेकिन इन महनीय नामों के अतिरिक्त भी कुछ इतने बड़े नाम हैं जो काव्यगत उत्कृष्टता,मौलिकता,संवेदनशीलता,शिष्टता,स्वाभिमान, शालीनता और भद्रता की प्रति मूर्ति रहे।
उनके साहित्यिक वैभव से आज भी बहुत लोग परिचित हैं जिन्होंने उन्हें सुना।लेकिन हम जैसे नए लोगों के लिए ये बड़ा खेद का विषय रहा कि हम मन भर न जान पाए इन विदुषियों को।
अभी हाल ही में मैं अपने पिता जी की लायब्रेरी में बरेली की विख्यात कवयित्री श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना जी का गीत संग्रह लेकर आई।जिन्हें मैंने कभी बचपन में देखा था।उनकी झलक भी हल्की सी याद है।उनको पढ़कर उनके करुणामयी गीतों का एक-एक शब्द ह्रदय को चीरता चला गया।
तब शब्द ही इतने सामर्थ्यवान होते थे कि आज की तरह सौंदर्य,गला,लंबी-चौड़ी भूमिका महत्वहीन थी।
तब और आज के फ़र्क भी बहुत आ गया है फिर भी कुछ मूल्य कभी विस्थापित नहीं होने चाहिए और कविता में तो विशेषतौर पर क्योंकि कविता को तो संतों ने भी उच्च माना।
कई नामों से वर्तमान पीढ़ी की अनभिज्ञता को देखते हुए मेरा मन हुआ कि ऐसे वरिष्ठ नामों की कुछ रचनाओं के वीडियो की सीरीज़ लेकर आऊँ।जो हमारे बीच नहीं हैं।
वीडियो के साथ-साथ उनके जीवन और लेखन से जुड़ी कोई जानकारी मिलेगी तो वहाँ से साभार कुछ एकत्र करके लेकर आने की कोशिश करूँगी।
मेरे छोटे से प्रयास में साथ दीजियेगा।इस सीरीज़ को भी मैं 'आचमन' नाम दे रही हूँ।
सोनरूपा

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